मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की शानदार जीत के नायक बनकर उभरे हैं। वह सबसे लंबे समय तक भाजपा से प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं।
64 वर्षीय नेता ने सत्ता विरोधी लहर को मात देने के लिए ‘लाडली बहना’ जैसी ”गेम-चेंजर” योजना शुरू करके मध्यप्रदेश में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की जिसमें वह सफल हुए। हालांकि, उनकी पार्टी ने पिछले महीने हुए विधानसभा चुनावों में उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया।
23 मार्च 2020 को मध्यप्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने भाजपा नेता चौहान को एक सफल प्रशासक के साथ ही बेहद विनम्र और मिलनसार राजनेता के रूप में पहचाना जाता है। किसान परिवार में पैदा हुए चौहान ने सबसे लंबे समय, यानी 16 साल नौ महीने तक लगातार मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर रहने का इतिहास रचा है।
मध्य प्रदेश की जनता में, विशेष रूप से बच्चों में मामा के नाम से लोकप्रिय चौहान मुख्यमंत्री बनने से पहले अपनी लोकसभा सीट विदिशा में अमूमन पैदल चलने के कारण ‘पांव-पांव वाले भैया’ के नाम से जाने जाते हैं।
वह 29 नवंबर 2005 को पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उनके नेतृत्व में वर्ष 2008 एवं वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत से जीत मिली थी। भाजपा ने उन्हें नवंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया था, लेकिन इस चुनाव में वह अपनी पार्टी को बहुमत नहीं दिला सके और सत्ता उनके हाथ से खिसक कर कांग्रेस नेता कमलनाथ के हाथ में चली गई।
हालात बदले और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आने तथा कांग्रेस के 22 विधायकों के बागी होने के कारण कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई, जिसके कारण कमलनाथ ने शक्ति परीक्षण से ठीक पहले 20 मार्च को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के इन 22 बागी विधायकों का इस्तीफा मंजूर होने के बाद ये सभी भाजपा में शामिल हो गये थे।
इसके बाद कांग्रेस के पास मात्र 92 विधायक रह गये और भाजपा 107 विधायकों के साथ बहुमत में आ गई। भाजपा विधायक दल ने चौहान को अपने दल का नेता चुना और वह 23 मार्च 2020 को चौथी बार मुख्यमंत्री बने।
मुख्यमंत्री के रूप में वर्ष 2005 से वर्ष 2018 तक के कार्यकाल में उन्होंने मध्यप्रदेश को बीमारू राज्य की श्रेणी से न केवल बाहर निकाला, बल्कि इसे विकसित राज्य बनाया।
सादगीपूर्ण जीवन पसंद करने वाले चौहान ने देश की राजनीति की बजाय मध्य प्रदेश की राजनीति में अपने को केन्द्रित रखा। वह इस बार छठीं बार सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा सीट से जीते हैं। इसके अलावा, वह विदिशा लोकसभा सीट से वर्ष 1991 से वर्ष 2006 तक पांच बार लगातार सांसद भी रहे।
सीहोर जिले के जैत गांव में पांच मार्च 1959 को किसान प्रेम सिंह चौहान एवं सुन्दर बाई चौहान के घर में जन्मे चौहान में नेतृत्व का हुनर तब सबसे पहले सामने आया, जब वह वर्ष 1975 में मॉडल हायर सेकेण्डरी स्कूल के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये। उनकी संगीत, अध्यात्म, साहित्य एवं घूमने-फिरने में विशेष रूचि है। उनकी पत्नी का नाम साधना सिंह हैं। उनके दो पुत्र कार्तिकेय एवं कुणाल है। कार्तिकेय कारोबारी हैं, जबकि कुणाल अभी अपनी पढ़ाई कर रहा है। शिवराज की शैक्षणिक योग्यता कला संकाय से स्नातकोत्तर है।
1972 में 13 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आये चौहान ने 1975 में आपातकाल के आंदोलन में भाग लिया और भोपाल जेल में बंद किए गए। भाजयुमो के प्रांतीय पदों पर रहते हुए उन्होंने विभिन्न छात्र आंदोलनों में भी हिस्सा लिया।
उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री के बतौर 29 नवंबर 2005 को पहली बार शपथ लेने वाले चौहान यहां लगातार दूसरी बार 2008 में एवं तीसरी बार 2013 में भी मुख्यमंत्री बने और दिसंबर 2018 तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद वह 23 मार्च 2020 को चौथी बार मुख्यमंत्री बने।
चौहान वर्ष 1990 में पहली बार बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने थे। इसके बाद 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उन्होंने लखनऊ सीट को रखा था और विदिशा से इस्तीफा दे दिया था। विदिशा में पार्टी ने चौहान को प्रत्याशी बनाया और वह वहां से पहली बार सांसद बने।
चौहान 1991-92 में अखिल भारतीय केसरिया वाहिनी के संयोजक और 1992 में अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव बने। वर्ष 1992 से 1994 तक भाजपा के प्रदेश महासचिव नियुक्त होने के साथ ही वह वर्ष 1992 से 1996 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति, 1993 से 1996 तक श्रम और कल्याण समिति तथा 1994 से 1996 तक हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रहे। ग्यारहवीं लोकसभा में वर्ष 1996 में वह विदिशा संसदीय क्षेत्र से दोबारा सांसद चुने गये। सांसद के रूप में 1996-97 में वह नगरीय एवं ग्रामीण विकास समिति, मानव संसाधन विकास विभाग की परामर्शदात्री समिति तथा नगरीय एवं ग्रामीण विकास समिति के सदस्य रहे।
वर्ष 1998 में वह विदिशा संसदीय क्षेत्र से ही तीसरी बार बारहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गये। वह 1998-99 में प्राक्कलन समिति के सदस्य रहे। 1999 में वह विदिशा से लगातार चौथी बार तेरहवीं लोकसभा के लिए एक बार फिर चुने गए और 1999-2000 में कृषि समिति के सदस्य तथा 1999-2001 में सार्वजनिक उपक्रम समिति के सदस्य रहे।
साल 2000 से 2003 तक भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने पार्टी की युवा इकाई को मजबूत करने के लिए मेहनत की। इस दौरान वे सदन समिति (लोकसभा) के अध्यक्ष और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव भी रहे। वह 2000 से 2004 तक संचार मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहने के साथ ही पांचवीं बार विदिशा से चौदहवीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
– एजेंसी