वीरप्पा मोइली ने कहा- संघर्षो के समाधान में गांधीवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा दे जी-20

पुणे (एजेंसी/वार्ता): पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री डॉ. एम वीरप्पा मोइली ने शुक्रवार को कहा कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) की अवधारणा को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए और भारत को जी-20 की अध्यक्षता के दौरान संघर्ष समाधान के गांधीवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चाहिए।

डॉ. मोइली पुणे में पुणे जिला बार एसोसिएशन के सहयोग से एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित लॉ एंड पीस (आईएसएलपी) पर दूसरी अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।

इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा; पटना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एल नरसिम्हा रेड्डी, राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम महाराष्ट्र के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अशोक भांगले; अखिल भारतीय बार काउंसिल के अध्यक्ष एड. आदिश अग्रवाल, वरिष्ठ अधिवक्ता सावित्री पांडे, पीके मल्होत्रा, उल्का जैन, आयोजन अध्यक्ष और संयोजक आईएसएलपी ललित भसीन, पुणे बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पांडुरंग थोरवे उपस्थित थे। संस्थापक अध्यक्ष एमआईटी डब्ल्यूपीयू और यूनेस्को चेयर होल्डर प्रो. डॉ. विश्वनाथ डी. कराड ने एमआईटी डब्ल्यूपीयू के कार्यकारी अध्यक्ष राहुल वी. कराड के साथ समारोह की अध्यक्षता की।

डॉ. मोइली ने कहा, ‘विकास और लोकतंत्र तथा शांति और सुरक्षा के बीच परस्पर संबंध है। शांति और सुरक्षा के अभाव में लोकतंत्र काम नहीं कर सकता, विकास नहीं हो सकता। हमें लोकतंत्र की रक्षा के लिए लोकतांत्रिक संस्थानों के दुरुपयोग को रोकने की जरूरत है।”

ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा, “कानून समाज में शांति और व्यवस्था सुनिश्चित करने का एक उपकरण है। हमें यह देखना होगा कि शांति को भंग किए बिना कानून को कैसे लागू किया जा सकता है। इस संतुलन को सुनिश्चित करने और बनाए रखने के लिए नेतृत्व को भी ज्ञान से भरा होना चाहिए। घरेलू कानूनों के अलावा हमें यह भी देखना होगा कि अंतरराष्ट्रीय कानून को कैसे प्रभावी बनाया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय जैसे संस्थानों को अधिक अधिकार दिए जाने चाहिए और किसी भी स्थिति में किसी भी देश के क्षेत्रीय हित प्रबल नहीं होने चाहिए।”

-एजेंसी/वार्ता

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