क्या आजादी के पचहत्तर साल बाद भी देश के नामचीन राजनीतिक दल मतदाताओं का मनोविज्ञान समझ नहीं पाए है और इसीलिए आज भी उसी पुराने ढर्रे से चुनाव जीत हासिल करना चाहते है? आज यह सवाल इसलिए सहज रूप से सामने आ रहा है, क्योंकि राजनीतिक दल और उसके ‘‘सर्वगुण सम्पन्न’’ नेता अभी भी भारत के मतदाताओं को ‘धर्मभिरू’ ही समझ रहे है और धार्मिक अवतारों की वैतरणी थामकर अपनी चुनावी नैया पार लगाना चाहते है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने इसी गरज से मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान भगवान राम को आदिवासियों से जोड़कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने का प्रयास किया।
उन्होंने आदिवासियों को कहकर महिमा मंडन किया कि भगवान राम को ‘पुरूषोत्तम’ बनाने वाले आदिवासी ही थे, उन्होंने मध्यप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में गौंड, बैगा, पनिका जैसा आदिवासी वोटर बहुसंख्यक मात्रा में है और ये वर्ग क्षेत्र की 47 सीटों को प्रभावित करते है, इसलिए मोदी ने यहां यह राजनीतिक खेल खेला। ये सीटें प्रारंभ से ही कांग्रेस प्रभावित रही है, इसलिए यहां राजनीति जरूरी समझी गई।
यद्यपि भारतीय संविधान में स्पष्ट उल्लेख है कि राजनीतिक लाभ के लिए धर्म का सहारा लेना गैरकानूनी है, किंतु यदि राजनीति के ‘शीर्ष पुरूष’ ही संविधान की परवाह न करें तो उसे क्या कहा जाए? यह तो सिर्फ मध्यप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र की ही बात हुई, किंतु इससे भी बढ़कर पांच राज्यों के विधानसभाओं और करीब 150 दिन बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के पूर्व अभी से अयोध्या के प्रस्तावित भव्य राम मंदिर को राजनीतिक स्वार्थ के तहत मुख्य मुद्दा बनाने की तैयारी की जा रही है, जिससे कि हिन्दू वोट प्रभावित हो सकें। लोकसभा चुनावों के चंद दिन पहले 22 जनवरी को अयोध्या स्थित राम मंदिर में रामलला की मूर्ति स्थापित की जानी है और मूर्ति स्थापना से पूर्व रामलला की दस करोड़ तस्वीरों के घर-घर बांटे जाने की तैयारी भाजपा कर रही है और मूर्ति स्थापना दिवस पर करीब पांच लाख लोगों की क्षमता की टेन्ट सिटी (तम्बू नगरी) वहां तैयार की जा रही हैै। यह भव्य समारोह आगामी लोकसभा चुनावों के बाद तक चलेगा और दुनिया भर के पांच हजार से ज्यादा कलाकार करीब एक साल तक यहां रामलीला का मंचन करेगें। इस भव्य महोत्सव को ‘‘अयोध्या में त्रेतायुग की वापसी’’ नाम दिया गया है, यहां राम जन्मोत्सव करीब 9 दिन चलेगा और पूरी दुनिया को उसके दर्शन कराए जाएगें। यह समारोह दीपावली से ही शुरू हो जाएगा, जब देश और दुनिया के ढ़ाई हजार कलाकार यहां तीन दिन ‘रामलीला’ का मंचन शुरू करेगें।
इस प्रकार यदि यह कहा जाए कि विधानसभाओं और भावी लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा के प्रचार का मुख्य मुद्दा धर्म आधारित होगा तो कतई गलत नहीं होगा। इसी परिदृष्य को देखकर देश के जागरूक और बुद्धिजीवी मतदाताओं के दिल-दिमाग में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या शीर्ष राजनेता अभी भी देश के आम मतदाताओं को सत्तर साल पुराना अनजान और अशिक्षित मतदाता ही मानते है, जो धर्म के आधार पर अपनी राजनीति को चमकाना चाहते है और अपनी कुर्सी को ‘दीर्घजीवी’ बनाना चाहते है।
जबकि आज के राजनेता वास्तव में भरोसे के संकट और वादों की ग्यारंटी के बीच की दूरी नहीं समझ पा रहे है। क्योंकि जागरूक और बुद्धिजीवी मतदाता भरोसे पर भरोसा नहीं करते, उन्हें तो ठोस तथ्यों के साथ वादे पूरे होने की ग्यारंटी चाहिए, जिसका आज सर्वत्र अभाव है। इसलिए आज की सबसे पहली जरूरत राजनेताओं द्वारा अपने संविधान पर भरोसा करने और उसके ईमानदारी पूर्ण परिपालन करने की है, न कि उसे अपनी स्वार्थ सिद्धी का माध्यम बनाने की, आखिर देश की राजनीति व उसके नेता देश और देशवासियों के बारे में कब चिंतन-मनन करेंगे? या ऐसा वक्त अब आने वाला नहीं है?
– एजेंसी