राजा रवि वर्मा: देवताओं को चेहरा देने वाले कलाकार की अद्भुत कहानी

राजा रवि वर्मा वही महान चित्रकार हैं, जिन्होंने हिंदू देवी-देवताओं को पहली बार एक मानवीय चेहरा दिया और आम जनता को अपने आराध्यों की तस्वीरें घरों में रखने का अधिकार भी। इससे पहले तक ईश्वर की मूर्तियां सिर्फ मंदिरों और महलों तक सीमित थीं। उनके चित्रों ने धार्मिकता को जन-जन तक पहुंचाया, लेकिन इसके लिए उन्हें कट्टरपंथियों के विरोध का भी सामना करना पड़ा।

जब पेंटिंग बनी पूजा की पहचान
उन्नीसवीं सदी में राजा रवि वर्मा की बनाई देवी-देवताओं की पेंटिंग्स ने एक नया अध्याय शुरू किया। राम, सीता, कृष्ण, राधा, दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी – जिनका आज चित्र हर घर के मंदिर में दिखता है – उन सभी के स्वरूप की कल्पना राजा रवि वर्मा ने ही की थी। इससे पहले इन चेहरों की कोई एकरूप छवि नहीं थी।

विरोध से कोर्ट तक पहुंचे
लेकिन देवी-देवताओं को चित्रित करने पर रुढ़िवादी वर्ग ने कड़ी आपत्ति जताई। उनका कहना था कि “भगवान की तस्वीरें केवल मंदिरों तक सीमित रहनी चाहिए।” इतना ही नहीं, एक मुकदमा बॉम्बे हाईकोर्ट तक पहुंचा, पर कोर्ट ने राजा रवि वर्मा को निर्दोष करार दिया। बाद में अप्सराओं की बोल्ड पेंटिंग्स पर भी उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा और उनका प्रिंटिंग प्रेस तक जला दिया गया।

पेंटिंग से सिनेमा की शुरुआत तक
राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स ने सिर्फ धार्मिक चेतना को नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा को भी आकार दिया। जब दादा साहब फाल्के ने भारत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाने की ठानी, तब कलाकारों की पोशाक, साज-सज्जा, और सेट डिज़ाइन के लिए उन्होंने रवि वर्मा की पेंटिंग्स से ही प्रेरणा ली।

आगे चलकर रामायण, महाभारत, जय संतोषी मां, और आधुनिक दौर की बाहुबली जैसी फिल्मों और सीरियलों में भी रवि वर्मा की कल्पनाओं की झलक देखने को मिली।

देवताओं का चेहरा कैसे गढ़ा?
राजा रवि वर्मा ने रामायण, महाभारत, वेद-पुराणों और सूरदास, तुलसीदास जैसे कवियों की रचनाओं का गहन अध्ययन किया। इन ग्रंथों में वर्णित भाव-भंगिमाओं, वस्त्रों, रंगों और प्रतीकों का उन्होंने कैनवस पर सजीव रूप में चित्रण किया। वे सिर्फ एक चित्रकार नहीं, एक धार्मिक कल्पना के वास्तुकार बन गए।

लोकप्रियता और उपयोग
उनकी रियलिस्टिक पेंटिंग्स का इस्तेमाल धार्मिक कैलेंडरों, कॉमिक्स (अमर चित्र कथा), मंदिरों, घरों और यहां तक कि विज्ञापनों में होने लगा। उन्होंने राजा-महाराजाओं की भी सुंदर छवियां बनाई और 2000 से अधिक कलाकृतियों की विरासत छोड़ी।

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