नगालैंड में इस साल हुए विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी)- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गठबंधन सत्ता में लौट आया और पूर्वोत्तर राज्य के इतिहास में पहली बार दो महिला उम्मीदवार भी चुनाव में विजयी हुईं।
इसके साथ ही शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने के संबंध में विधानसभा में नगरपालिका विधेयक सर्वसम्मति से पारित किया गया। इससे दो दशकों के बाद राज्य में निकाय चुनावों का रास्ता साफ हो गया।
एनडीपीपी और भाजपा के ‘पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस’ (पीडीए) ने 27 फरवरी को हुए नगालैंड विधानसभा चुनावों में 60 में से 37 सीट जीतकर बहुमत हासिल किया और नेफियू रियो लगातार पांचवीं बार आदिवासी बहुल राज्य के मुख्यमंत्री बने। इसके साथ ही वह राज्य में इस पद पर सबसे लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री बन गए हैं।
पिछले चुनाव की तुलना में गठबंधन ने बेहतर प्रदर्शन किया। पिछले चुनाव में क्षेत्रीय पार्टी ने 18 और भाजपा ने 12 सीट हासिल की थी।
इस साल के विधानसभा चुनावों में दो महिला उम्मीदवार- एनडीपीपी की हेखानी जखालू और सलहूतोनु क्रुसे ने पश्चिमी अंगामी और दीमापुर-तृतीय सीट से मौजूदा विधायकों को हराकर जीत दर्ज की।
विधानसभा चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) ने दो और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने एक एक सीट जीतकर ईसाई बहुल राज्य में अपना खाता खोला।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के सात विधायकों और चार निर्दलीय विधायकों सहित राज्य के सभी राजनीतिक दलों ने एनडीपीपी-भाजपा सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया, जिससे राज्य में तीसरी बार सर्वदलीय सरकार बनी।
सभी राजनीतिक दल चुनाव से पहले जहां दशकों पुराने नगा राजनीतिक मुद्दे को अपनी प्राथमिकता बताते रहे, वहीं राज्य सरकार की ओर से शांति वार्ता को निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) का गठन नहीं किये जाने से यह मामला एक बार फिर पीछे छूट गया।
शांति वार्ता को निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए केंद्र एनएससीएन-आईएम के साथ 1997 से और नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप (एनएनपीजी) की कार्य समिति के साथ 2017 से अलग से संवाद कर रहा है।
नगालैंड विधानसभा ने शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की मांग करने वाले एक विधेयक को नौ नवंबर को सर्वसम्मति से पारित किया, जिससे एक विवादास्पद मुद्दा हल हो गया और दो दशकों के बाद राज्य में नगरपालिका चुनावों का रास्ता भी साफ हो गया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस तरह के आरक्षण का विरोध करने वाली शीर्ष आदिवासी संस्था ने भी इसे स्वीकार कर लिया है और राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) जल्द ही निकाय चुनावों की तारीखों की घोषणा करेगा।
पूर्वोत्तर राज्य में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव लंबे समय से लंबित हैं, आखिरी बार चुनाव 2004 में हुए थे। इसके बाद नागा शांति वार्ता मुद्दा नहीं सुलझने और महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के मुद्दे के चलते चुनाव नहीं हो पाये। आरक्षण का विरोध करते हुए जनजातीय संस्थाओं ने कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) के तहत गारंटी प्राप्त नगालैंड के विशेष अधिकारों का उल्लंघन है।
पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य के वार्षिक कार्यक्रम ’10-दिवसीय हॉर्नबिल’ उत्सव में इस बार 1,54,057 पर्यटक पहुंचे। यह संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 13,758 अधिक है। इस उत्सव के जरिये लोगों को नगालैंड की 18 जनजातियों को एक ही मंच पर देखने का मौका मिला।
– एजेंसी