दही की जब भी बात की जाती है, हम सभी के मन में सिर्फ सफेद दही की छवि उभर आती है. क्योंकि हमारी पीढ़ी दही के सिर्फ इसी स्वरूप से परिचित है. लेकिन आपको बता दें कि भारत में केवल सफेद दही बनाने की प्रथा नहीं है. बल्कि करीब 15 से 20 साल पहले तक गांवों में लाल दही बनाई जाती थी. लाल रंग की यह दही सफेद दही की तुलना में कहीं अधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है. यही वह दही है, जिसका रायता बनाकर भोजन के साथ खाने की अनुमति आयुर्वेद देता है.
लाल दही को बनाने की प्रक्रिया सफेद दही बनाने की तुलना में काफी ऊर्जा लेने वाली है. इसलिए लाल दही अब गांवों में भी बहुत कम घरों में बनती है. इस दही को बनाने के लिए दूध को 8 से 10 घंटे तक धीमी आंच पर पकाया जाता है, जिसके लिए चूल्हे या गैस का नहीं बल्कि बरोसी का उपयोग किया जाता है. बरोसी में दूध पकाने की प्रक्रिया को दूध ओटाना कहते हैं. जब यह दूध 8 से 10 घंटे तक पक जाता है तो दूध के गुणों में वृद्धि और बदलाव दोनों हो जाते हैं.
आयुर्वेद के अनुसार सफेद दही का सेवन भोजन के साथ नहीं करना चाहिए. विशेषरूप से नमक के साथ इस दही को खाने की बिल्कुल मनाही है. क्योंकि नियमित रूप से भोजन के साथ दही खाने पर आपका पाचन भी डिस्टर्ब होता है और स्किन डिजीज होने की संभावना भी बढ़ जाती है.
सफेद को सदैव चीनी या गुड़ के साथ खाना चाहिए.
आप इस दही को सुबह नाश्ते के बाद और लंच से पहले के समय में शक्कर मिलाकर खा सकते हैं.
सफेद दही से बना फ्रूट रायता भी खाया जा सकता है.
सफेद दही से बना रायता आपकी त्वचा पर सफेद दाग की वजह बन सकता है.
मुंह के छाले दूर करने के लिए आप सफेद दही को दिन में तीन से चार बार खाएं. आप चाहें तो उसमें शक्कर मिला सकते हैं.
सफेद दही का उपयोग कढ़ी बनाने के लिए बिल्कुल नहीं करना चाहिए. दही से बनी कढ़ी पाचनतंत्र को नुकसान पहुंचाती है.
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