एंग्जाइटी एक ऐसी समस्या है, जिसे ज्यादातर लोग सीरियसली नहीं लेते. क्योंकि एंग्जाइटी को सिर्फ अधिक सोचने की आदत से जोड़कर देखा जाता है. यदि कोई ट्रीटमेंट ले रहा व्यक्ति किसी से ये कहता है कि उसे एंग्जाइटी की समस्या है तो लोग बिना सोचे समझे ही उसे सुझाव देना शुरू कर देते हैं कि तुम अधिक सोचते हो… इसलिए तुम्हें ये समस्या हो रही है. ज्यादा मत सोचा करो… हालांकि आपको बता दें कि एंग्जाइटी से जूझ रहा व्यक्ति अपनी सोच और विचारों को रेग्युलेट करने में असमर्थ होता है.
ज्यादा सोचने से एंग्जाइटी की समस्या नहीं होती है. इसलिए इस समस्या से जूझ रहे व्यक्ति को गैरजरूरी ज्ञान देने से बचना चाहिए. साथ ही इस दिक्कत को लेकर अपनी जानकारी भी बढ़ानी चाहिए क्योंकि कोविड के बाद इस समस्या के पेशेंट लगातार बढ़ रहे हैं. बढ़ते पेशेंट्स और बीमारी के बारे में जानकारी का अभाव स्थिति को गंभीर बना देता है.
एंजाइटी को आसान भाषा में समझाते हुए डॉक्टर राजेश कहते हैं कि एंग्जाइटी बॉडी का एक रिऐक्शन है, जो ब्रेन में बहुत सारी नेगेटिविटी और ढेर सारे नेगेटिव इमोशन्स इक्ट्ठा होने के बाद शरीर रिस्पॉन्स करता है. हर व्यक्ति में इसके अलग कारण और अलग लेवल हो सकते हैं. लेकिन ब्रेन फंक्शनिंग के आधार पर अगर बात करें तो सेरेटॉनिन की मात्रा कम होने और इसकी मात्रा बढ़ने, दोनों ही स्थिति में एंग्जाइटी की समस्या हो सकती है.
ज्यादातर केसेज में यही होता है कि किसी व्यक्ति को एंग्जाइटी है, ये पता चलते ही लोग उसे अधिक ना सोचने की सलाह देने लगते हैं. इस पर बात करते हुए डॉक्टर राजेश कहते हैं कि अधिक थॉट्स आना हॉर्मोनल डिसबैलंस के कारण होता है. यानी जब बॉडी के अंदर सेरेटॉनिन घट चुका होता है, तब थॉट्स बहुत ज्यादा आते हैं…इसलिए हॉर्मोनल डिस्टर्बेंस से एंग्जाइटी होती है अधिक सोचने से नहीं.
एंग्जाइटी के जो लक्षण हैं, वे जब बहुत अधिक बढ़ जाते हैं तो एंग्जाइटी अटैक होता है. जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति में सभी लक्षण एक साथ दिखें लेकिन ज्यादातर लोगों में ज्यादातर लक्षण एक ही समय पर देखने को मिलते हैं…
घबराहट होना
धड़कनें बढ़ना
बीपी बढ़ना
बिना बात के रोने की इच्छा
पेट में बटरफ्लाई उड़ने जैसी फीलिंग
चेहरे पर तेज झनझनाहट होना
हाथों-पैर कांपना या कमजोरी फील होना
दिमाग का काम ना करना
किसी भी काम में फोकस ना कर पाना
एंग्जाइटी का इलाज क्या है?
एंग्जाइटी का इलाज करके इसे पूरी तरह कंट्रोल किया जा सकता है और लाइफ को पूरी तरह नॉर्मल भी किया जा सकता है. इसके लिए आप किसी सायकाइट्रिस्ट की मदद लें. क्योंकि बहुत सीमित दवाओं और काउंसलिंग के जरिए इसे ठीक किया जा सकता है.
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