शरीर की हड्डियों को नुकशान करने वाला कैंसर ‘बोन कैंसर’ कहलाता है. यह एक ऐसी खतरनाक बीमारी है, जो हड्डियों में पनपना शुरू होती है. जब बोन में कैंसर सेल्स बढ़ने लगते हैं तो ये टीशूज़ को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं. बोन कैंसर को इसलिए भी खतरनाक माना जाता है, क्योंकि ये तेजी से बढ़ता है और शरीर के बाकी आंगों तक फैल सकता है. इस कैंसर की दो कैटेगरीज होती हैं- ‘प्राइमरी’ और ‘सेकेंडरी’.
प्राइमरी बोन कैंसर में हड्डी की कोशिकाएं यानी सेल्स ही कैंसर सेल्स में तब्दील होने लगती हैं. जबकि सेकेंडरी बोन कैंसर तब होता है, जब किसी व्यक्ति को शरीर के किसी दूसरे अंग में कैंसर हुआ होता है, जो फैलते-फैलते हड्डियों तक पहुंच जाता है. सेकेंडरी बोन कैंसर को मेटास्टैटिक बोन कैंसर भी कहा जाता है.
बोन कैंसर शरीर की किसी भी हड्डी को नुकशान पंहुचा सकता है. हालांकि इसके ज्यादातर मामले पैरों की हड्डियों और ऊपरी बांहों की लंबी हड्डियों के देखे जाते हैं. बोन कैंसर का सबसे मामूली लक्षण हड्डियों में होने वाला दर्द है, जो वक्त के साथ बदतर होता चला जाता है. हड्डी पर सूजन और रेडनेस होना या कोई गांठ बनना इस खतरनाक बीमारी के संकेत हो सकते हैं.
बोन कैंसर का सबसे कॉमन टाइप ‘ओस्टियोसारकोमा’ है. यह आमतौर पर 20 साल से कम उम्र के लोगों और युवाओं को प्रभावित करता है.
इविंग सरकोमा भी बोन कैंसर का ही एक प्रकार है, जो आमतौर पर 10 से 20 साल की उम्र के लोगों को अपनी चपेट में लेता है. युवावस्था में शरीर में होने वाली तेज वृद्धि के दौरान युवा इस बीमारी से प्रभावित होते हैं. उनकी हड्डी में ट्यूमर बन सकता है, जो बढ़कर कैंसर का रूप ले सकता है.
बोन कैंसर का तीसरा प्रकार कोंड्रोसारकोमा है, जो आमतौर पर 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को अपनी चपेट में लेता है.
वैसे तो इस सवाल का कोई सटीक और सही जवाब नहीं है कि बोन कैंसर किस वजह से होता है. हालांकि एनएचएस के मुताबिक, अगर किसी व्यक्ति ने पहले किसी बीमारी के दौरान रेडियोथेरेपी ली है, तो उसमें बोन कैंसर विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा, पजेट बोन की बीमारी और ली-फ्राउमेनी सिंड्रोम नाम की एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी भी बोन कैंसर का कारण बन सकती है.
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