क्या आप जानते है हाइपरटेंशन 5 तरह के होते हैं,जानिए किसमें है ज्यादा खतरा

मॉडर्न लाइफस्टाइल में आज अधिकांश लोगों का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ रहता है. बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर के कारण हार्ट, ब्रेन, किडनी और अन्य तरह की बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया भर में करीब 1.28 अरब लोगों का बीपी बढ़ा हुआ है लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से 46 प्रतिशत को पता भी नहीं है कि उन्हें ब्लड प्रेशर की बीमारी है. जब किसी अन्य समस्याओं का इलाज कराने जाते हैं, तब उन्हें पता चलता है कि उनका बीपी बढ़ा हुआ है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक करीब 70 करोड़ लोग बीपी का इलाज भी नहीं कराते हैं. क्योंकि वे यह मानने के लिए तैयार ही नहीं होते कि उन्हें हाई बीपी है.

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक विश्व में 75 लाख लोगों की मौत के लिए किसी न किसी तरह से ब्लड प्रेशर जिम्मेदार है. अगर समय पर लोगों को यह पता चल जाए कि उसे बीपी की बीमारी है तो समय रहते इससे होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है. इसके लिए यह जानना जरूरी है कि बीपी होता क्या है और यह कितने तरह के होते हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक उपर वाला ब्लड प्रेशर अगर 140 है तो इसे हाई बीपी कहा जा सकता है लेकिन भारत के संदर्भ यह अलग तरह से परिभाषित है. इंडियन गाइडलाइन ऑफ हाइपरटेंशन-4 के मुताबिक भारत में अगर उपर वाला ब्लड प्रेशर 140 हो और नीचे वाला ब्लड प्रेशर 90 हो तो यह हाई बीपी है. हालांकि अन्य एजेंसियों के मुताबिक उपर वाला 130 और नीचे वाला अगर 80 से ज्यादा है तो इसे हाई बीपी माना जाएगा.

प्राइमरी हाइपरटेंशन में कोई लक्षण नहीं दिखता. यही कारण है भारत के लोग इस बात से अंजान रहते हैं. भारत की हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक डायबिटीज और मोटापे से पीड़ित लोगों, दिल से संबंधित बीमारियों वाले लोग, स्मोकर और 60 साल से ज्यादा की उम्र के बुजुर्गों में प्राइमरी हाइपरटेंशन होने का खतरा ज्यादा है, इसलिए इन लोगों को रूटीन बीपी का चैक-अप कराना चाहिए.

ज्ञात वजहों के कारण जब अचानक बीपी बहुत ज्यादा बढ़ जाए तो इसे सेकेंडरी हाइपरटेंशन कहते हैं. यह ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया, एल्डोस्टेरोनिज्म, रीनोवैस्कुलर हाइपरटेंशन और किडनी की बीमारी के कारण हो सकता है. 5 से 10 प्रतिशत हाइपरटेंशन के मामले में सेकेंडरी हाइपरटेंशन ही रहता है.

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में जब बीपी बढ़ जाता है तो इसे जेस्टेशनल हाइपरटेंशन कहते हैं. इस कारण भ्रूण पर घातक असर पड़ सकता है.

यह बहुत ही हैरान कर देने वाली बीमारी है. व्हाइट कोट हाइपरटेंशन में घर पर या बाहर में तो बीपी नॉर्मल रहता है लेकिन ऑफिस में जब बीपी की माप ली जाती है तो घर के मुकाबले 20/10 ज्यादा होता है. भारतीय युवाओं में व्हाइट कोट हाइपरटेंशन की बीमारी का जोखिम सबसे ज्यादा माना जाता है.

जब हाइपरटेंशन की तीन दवा लेने के बावजूद बीपी नॉर्मल न हो तो इसे रेजिस्टेंस हाइपरटेंशन कहते हैं. इसमें शरीर के अंदरुनी अंगों के डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके लिए रेजिस्टेंस हाइपरटेंशन का इलाज किया जाता है. यह बहुत ही खतरनाक बीमारी है जिसमें जान भी जा सकती है.

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