अब्बू : कवि ने क्या खूब कहा है बड़े भैया–
करत-करत अभ्यास के, जड़मति होए सुजान
रसरी आवत-जात से, शिल पर पड़े निशान
रवि: मेरा जवाब भी सुन लो छोटे भैया–
बिना करत अभ्यास के, मुर्ख बने विद्वान
कालिदास का नाम क्या, भूल गये श्रीमान😜😂😂😂😛🤣
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अब्बू : रवि भाई अगर उर्दू वर्णमाला से “गाफ” और “गेन” का फर्क मिटा दिया जाये !
रवि : क्यों मिटा दिया जाये ?
अब्बू : मान लो २ मिनट के लिए !
रवि: चलो मान लिया तो !
अब्बू : ये हुई न बात। यदि “गाफ” और “गेन” का फर्क भुला दिया जाये तो “बेगम” शब्द वो बला है, जिसकी वजह से दुनिया के तमाम ग़म मिलते हैं, फिर भी हम बीवी को बे-ग़म कहते हैं।😜😂😂😂😛🤣
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अब्बू : गोस्वामी तुलसीदास जी ने क्या खूब ये दोहा कहा है–
चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर
तुलसीदास चन्दन घिसे, तिलक लेत रघुवीर
रवि: ये तो पुराना हो चुका है। आज गूगल का, आशिकी भरा आधुनिक ज़माना है इसलिए इस दोहे को कुछ यूँ कहो —
चित्रकूट के घाट पर, भई प्रेमियन की भीर
तुलसीदास देखत रहे, रांझे ले उड़े हीर😜😂😂😂😛🤣