अलवर (एजेंसी/वार्ता): राजस्थान में अलवर जिले के सरिस्का बाघ परियोजना में बसे गांव का विस्थापन प्रक्रिया में इन दिनों तेजी आई है और इसमें सरिस्का के शीर्ष अधिकारी लगे हुए हैं । सरिस्का में बसे 29 गांव में से पांच गांव का पूर्व में ही विस्थापन कर दिया था लेकिन बाकी के गांव में से छह गांव में इन दिनों सतत प्रक्रिया शुरू है और यह प्रक्रिया काफी युद्ध स्तर पर चल रही है लेकिन जमीन अभाव के कारण इसमें गति आशा के अनुरूप नहीं मिल पा रही है ।
सरिस्का के उप वन संरक्षक जगदीश दहिया ने बताया कि 11 गांव में 1151 परिवारों में से 848 परिवारों को विस्थापित कर दिया गया है। गत दो साल में सबसे ज्यादा विस्थापन प्रक्रिया अमल में लाई गई । इन गांवों में सुकोला, कांकवाडी, क्रशका, हरीपुरा, देवरी और लॉज गांव में विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है। हर महीने किसी न किसी गांव से कुछ परिवार विस्थापन योजना के तहत बसाई जा रहे हैं और इन को सबसे ज्यादा भूमि का पैकेज पसंद आ रहा है।
उन्होंने बताया कि सूकोला में 65 परिवारों में से 41 परिवारों को विस्थापित कर दिया गया है। काकवाडी में 171 परिवारों में से 143 परिवारों विस्थापित कर दिया गया है क्रास्का गांव में 206 परिवारों में से 125 परिवारों को विस्थापित कर दिया गया है। यहां 39 परिवार विस्थापन की प्रकीर्य में है। हरीपुरा अब मैं 78 में से 50 परिवारों को विस्थापित कर दिया गया है। छह परिवार विस्थापन की प्रक्रिया में हैं इसी तरह देवरी गांव में 190 परिवारों में से 94 परिवारों को विस्थापित कर दिया गया है। चार परिवार विस्थापन की प्रक्रिया में हैं। लॉज गांव में 124 परिवारों में से 76 परिवारों को विस्थापित कर दिया गया है 43 परिवार विस्थापन की प्रक्रिया में हैं। जिसमें विस्थापन सहमति देने के उपरांत ही परिवारों के विस्थापन किए जाने की कार्रवाई की जा रही है।
यह प्रक्रिया वर्ष 2008 से शुरू हुई थी जिसमें भगानी ,रोटक्याला, उमरी ,पानी डाल और डाबली को पूर्व में ही विस्थापित कर दिया गया था । अब बाकी के छह गांव विस्थापित किए जा रहे हैं। इन गांव को वर्तमान में नारायणपुर के पास कानपुरा लोज, तिजारा रूंध में बसाया जा रहा है ।
कानपुरा लोज में करीब 126 हेक्टेयर जमीन सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई है । वहीं तिजारा रूंध में 350 हेक्टेयर जमीन उपलब्ध है और 660 हेक्टेयर जमीन उपलब्ध होने की पूरी प्रक्रिया में है। इस वक्त सबसे ज्यादा सरिस्का के विस्थापित परिवार तिजारा रूंध को पसंद कर रहे हैं क्योंकि यहां पर सभी सुविधाएं सुविधाएं उपलब्ध हैं। हाईवे से कनेक्ट है। पूर्व में नंगला रूंध बड़ोद ,मौजपुर रूंध में विस्थापित परिवारों को बसाया गया था जहां सुविधाओं का काफी अभाव था। लेकिन तिजारा रूंध में यहां के विस्थापित परिवारों को पसंद आ रही है । विस्थापित परिवारों को दो तरह के पैकेज हैं ।
एक तो 15 लाख रुपए नगद का पैकेज है दूसरा पैकेज है 6 बीघा जमीन ,600वर्गगज का प्लॉट और सुविधाओ के लिए 375000 रुपए का मुआवजा। विस्थापित परिवारों को सबसे ज्यादा दूसरा पैकेज पसंद आ रहा है और क्योंकि उनके पास पशु है जिन्हें पालने के लिए जमीन चाहिए और जंगल के आदमियों को जमीन बहुत जरूरी है। ये परिवार मवेशी चराई पर ही निर्भर है। फसल से ही अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं।
उन्होंने बताया कि इसके लिए तहसीलदार के नेतृत्व में बनी कमेटी विस्थापित गांव का दौरा/ निरीक्षण करती है और सर्वे करती है और जो रिपोर्ट देती है उसी के आधार पर परिवार निर्धारित होते हैं । इसमें मुख्य बात यह है कि 21 साल के शादीशुदा लोगों को ही एक परिवार माना गया है। उन्होंने बताया कि एक एक करके गांवों का सर्वे कराया जाता है। फिर विस्थापन की प्रक्रिया शुरू होती है।
उन्होंने बताया कि सरिस्का जंगल से सभी लोग निकलना चाहते हैं और धीरे-धीरे सभी को विस्थापित किया जा रहा है । पहले परिवार की सहमति ली जाती है उसके बाद ही जमीन आवंटन की प्रक्रिया शुरू होती है । जब वह घर बना लेता है तब यहां से परिवार को विस्थापित कर दिया जाता है।
उधर सरिस्का के क्षेत्रीय निदेशक आरएन मीणा ने बताया कि विस्थापन की प्रक्रिया में गत दो वर्ष में काफी तेजी आई है हर गांव में जाकर उन्हें यहां से विस्थापन के बारे में बताया जाता है । उनके भविष्य बच्चों की पढ़ाई लिखाई के बारे में बताया जाता है। सुविधाओं के बारे में बताया जाता है। उसके बाद काफी परिवार सहमत होते हैं । सहमत होने के बाद सहमति पत्र लिया जाता है फिर आगे की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
-एजेंसी/वार्ता
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