गर्भावस्था के दौरान थायरॉइड का सही स्तर पर रहना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि प्रेगनेंसी में महिला को थायरॉइड असंतुलन (हाइपोथायरॉइडिज्म या हाइपरथायरॉइडिज्म) की समस्या होती है, तो यह बच्चे की सेहत पर बुरा प्रभाव डाल सकता है।
थायरॉइड क्या है और यह क्यों जरूरी है?
थायरॉइड एक ग्रंथि है, जो गले के सामने की तरफ स्थित होती है। यह हार्मोन बनाती है जो शरीर के मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने का काम करते हैं।
हाइपोथायरॉइडिज्म (थायरॉइड हार्मोन की कमी) होने पर शरीर की कार्यक्षमता धीमी हो जाती है।
हाइपरथायरॉइडिज्म (थायरॉइड हार्मोन अधिक बनने) से शरीर में अत्यधिक ऊर्जा खर्च होती है, जिससे हार्मोन असंतुलन हो सकता है।
बच्चे की सेहत पर थायरॉइड का असर
✅ मानसिक विकास में बाधा: अगर गर्भवती महिला का थायरॉइड लेवल असंतुलित रहता है, तो इससे बच्चे के मस्तिष्क के विकास पर असर पड़ सकता है।
✅ समय से पहले डिलीवरी: यदि प्रेगनेंसी के दौरान महिला को हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या है, तो प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है।
✅ मिसकैरेज का खतरा: अधिक थायरॉइड (हाइपरथायरॉइडिज्म) होने पर गर्भपात (मिसकैरेज) होने की संभावना बढ़ जाती है।
✅ बच्चे में थायरॉइड की समस्या: यदि मां का थायरॉइड लेवल असंतुलित रहता है, तो बच्चे को भी यह समस्या हो सकती है।
✅ कम वजन का जन्म: कई मामलों में थायरॉइड असंतुलन के कारण नवजात शिशु का वजन सामान्य से कम हो सकता है।
गर्भावस्था में थायरॉइड को कंट्रोल कैसे करें?
✔ नियमित चेकअप करवाएं: डॉक्टर की सलाह से थायरॉइड टेस्ट करवाते रहें।
✔ आयोडीन युक्त आहार लें: अपनी डाइट में आयोडीन, विटामिन और मिनरल्स को शामिल करें।
✔ दवाइयों का सही तरीके से सेवन करें: डॉक्टर द्वारा दी गई थायरॉइड दवाओं को नियमित रूप से लें।
✔ स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं: रोजाना व्यायाम और योग करें, जिससे हार्मोन संतुलित रहें।
✔ तनाव से बचें: अत्यधिक मानसिक तनाव भी थायरॉइड असंतुलन को बढ़ा सकता है, इसलिए रिलैक्स रहें।
निष्कर्ष:
गर्भावस्था के दौरान थायरॉइड का संतुलित रहना बेहद जरूरी है। यदि किसी महिला को पहले से थायरॉइड की समस्या है, तो उसे प्रेगनेंसी के दौरान डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाएं और डाइट लेनी चाहिए। समय पर जांच और सही देखभाल से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रह सकते हैं!
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