महासचिव पद से हटाने को चुनौती देने वाली शशिकला की याचिका खारिज

मद्रास उच्च न्यायालय ने दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता की करीबी सहयोगी सुश्री वी.के. शशिकला की उस याचिका खारिज कर जिसमे उन्होंने अन्नाद्रमुक के अंतरिम महासचिव पद से हटाए जाने को चुनौती दी थी।

सुश्री जयललिता के 75 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद पांच दिसंबर 2016 को उनकी मृत्यु के बाद सुश्री शशिकला को पार्टी के अंतरिम महासचिव के रूप में चुना गया था और उन्होंने 2017 के नए साल की पूर्व संध्या पर यह पद संभाला था। इसके बाद राज्य में सत्ता संघर्ष शुरू हो गय और अन्नाद्रमुक दो गुटों में विभाजित हो गई। ओ.पन्नीरसेल्वम की जगह मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद एडप्पादी के.पलानीस्वामी के नेतृत्व में फरवरी 2017 में सुश्री शशिकला खिलाफ विद्रोह हुआ।

सुश्री शशिकला को अंतरिम महासचिव के रूप में चुने जाने और विभाजन के बाद श्री पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। जब श्री पन्नीरसेल्वम ने आरोप लगाया था कि उन्हें विद्रोह के लिए इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था।

श्री पलानीस्वामी के मुख्यमंत्री बनने के एक सप्ताह बाद ही सुश्री शशिकला को भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराया गया और चार साल की जेल की सजा सुनाई गई।

इस बीच अन्नाद्रमुक के दोनों विरोधी गुटों ने अपने मनमुटाव को दबा दिया और श्री पन्नीरसेल्वम की विलय की प्रमुख मांग (सुश्री शशिकला को पार्टी पद से हटा दिया जाना चाहिए) पर सहमति जताते हुए पलानीस्वामी खेमे में विलय कर लिया।

इसके बाद सितंबर 2017 में एआईएडीएमके जनरल काउंसिल की बैठक हुई, जिसमें उन्हें अंतरिम महासचिव के पद से हटा दिया गया और पार्टी से भी निष्कासित कर दिया गया। जिसके चलते विलय के बाद पार्टी में दोहरा नेतृत्व हो गया।

पार्टी पद से हटाए जाने को चुनौती देते हुए सुश्री शशिकला ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया और उन्होंने यह घोषित करने के लिए एक पुनरीक्षण याचिका दायर की कि वह 29 दिसंबर 2016 को इस पद पर नियुक्ति के बाद से अन्नाद्रमुक की अंतरिम महासचिव बनी हुई हैं। जिसे मंगलवार को डिविजन बेंच ने भी खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति आर. सुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति एन. सेंथिलकुमार की खंडपीठ ने तीन अपील मुकदमों के साथ-साथ पिछले साल दायर एक नागरिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय से चेन्नई में एक अतिरिक्त सिटी सिविल कोर्ट द्वारा पारित आदेशों को रद्द करने का आग्रह किया गया था। गत 11 अप्रैल, 2022 को ऐसी घोषणा की मांग करने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी गई।

– एजेंसी