राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने युवाओं के चयन, विभिन्न वर्गों से अधिक प्रतिनिधित्व और न्यायपालिका में निचले से उच्च स्तर तक प्रतिभा के विकास के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन का सुझाव दिया है।
राष्ट्रपति ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की वकालत करते हुए कहा कि विविधीकरण प्रक्रिया को तेज़ करने का एक तरीका एक ऐसी प्रणाली का निर्माण हो सकता है जिसमें योग्यता आधारित, प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी प्रक्रिया के जरिए विभिन्न पृष्ठभूमि से न्यायाधीशों की भर्ती की जा सके।
राष्ट्रपति मुर्मू ने रविवार को संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट परिसर में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि चयन प्रणाली कम प्रतिनिधित्व वाले सामाजिक समूहों को भी अवसर प्रदान कर सकती है। राष्ट्रपति ने इससे पहले सुप्रीम कोर्ट परिसर में डॉ. बीआर अंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री (स्वंतत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल भी मौजूद थे।
राष्ट्रपति ने संसद, सेना और अन्य क्षेत्रों में महिलाओं और पिछड़ों के बढ़ते प्रतिनिधित्व का जिक्र करते हुए न्यायिक प्रक्रिया में भी उनकी भागीदारी बढ़ाये जाने के महत्व को रेखांकित किया। राष्ट्रपति ने सबको न्याय उपलब्ध कराने के महत्व पर एक बार फिर जोर दिया और कहा कि हमें इस बात पर विचार करना चाहिए की क्या सभी को न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है। इस दिशा में धन का अभाव एक बड़ी बाधा है। इस संदर्भ में उन्होंने न्यायिक मदद के विस्तार करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने भाषा सहित अन्य अवरोधों का भी उल्लेख किया।
राष्ट्रपति ने न्याय को नागरिक केंद्रित बनाए जाने पर जोर दिया। न्याय प्रणाली के औपनिवेशिक इतिहास का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इसके अवशेषों को हटाने का कार्य प्रगति पर है। उन्हें यकीन है कि हम अधिक सचेत प्रयासों से सभी क्षेत्रों में उपनिवेशीकरण के शेष हिस्से को तेजी से साफ कर सकते हैं। उनका मानना है कि इसमें युवाओं को भी शामिल किया जाएगा।
– एजेंसी