कांग्रेस ने चुनावी बांड को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले स्वागत करते हुए गुरुवार को कहा कि यह भ्रष्टाचार का मामला है तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे सीधे जुड़े हैं और न्यायालय के फैसले से उनका भ्रष्टाचार बेनकाब हुआ है। कांग्रेस मीडिया एवं पब्लिसिटी विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा, “आज माननीय सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इलेक्टोरल बॉन्ड पर एक महत्वपूर्ण फैसला आया है और कांग्रेस न्यायालय के मोदी सरकार की ‘चुनावी बॉन्ड योजना’ को रद्द करने के सर्वसम्मत फैसले का स्वागत करती है।”
उन्होंने कहा, “आज प्रधानमंत्री और उनका भ्रष्टाचार बेनकाब हो गया है। प्रधानमंत्री ने मनी बिल लाकर इसे कानूनी जामा पहनाया था ताकि विधायक खरीदे जा सकें, अपने मित्रों को कोयले की खदान, हवाई अड्डे दिए जा सकें।इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम भ्रष्टाचार का मामला है जिसमें सीधे-सीधे प्रधानमंत्री शामिल हैं। देश पर चुनावी बॉन्ड को थोपा गया, जबकि चुनाव आयोग, वित्त मंत्रालय और कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने इसका विरोध किया था।”
श्री खेड़ा ने कहा, “आज यह बात साफ हो गई-मोदी सरकार सिर्फ कमीशन, रिश्वतखोरी और काला धन छिपाने के लिए ही चुनावी बॉन्ड’ लेकर आई थी। ये बॉन्ड श्री मोदी की ‘भ्रष्टाचार बढ़ाओ नीति’ की वो साजिश है जो आज पूरे देश के सामने बेनकाब हो चुकी है। श्री मोदी की ऐसी भ्रष्टाचारी नीतियां लोकतंत्र के लिए बेहद घातक और देश के लिए खतरा हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम भ्रष्टाचार का मामला है, जिसमें सीधे-सीधे प्रधानमंत्री शामिल हैं।” उन्होंने कहा, “साल 2017 में जब इलेक्टोरल बॉन्ड लाया गया था तब से हमने इसका पुरजोर विरोध किया था। हमारी इसको लेकर ये आपत्तियां थीं कि यह प्रक्रिया अपारदर्शी है,इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा,काला धन सफेद हो जाएगा, सारा लाभ सत्ता पक्ष को मिलेगा और इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों और सत्ता पक्ष के बीच एक अनकहा- अनदेखा रिश्ता स्थापित हो जाएगा।”
प्रवक्ता ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि चुनावी बॉन्ड योजना संसद द्वारा पारित कानूनों के साथ ही भारत के संविधान का भी उल्लंघन कर रही है। भाजपा को ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ में जो 5200 करोड़ रुपए मिले हैं, उसके बदले भाजप ने क्या बेचा है। हमारी मांग है कि भारतीय स्टेट बैंक इससे जुड़ी तमाम जानकारी को सार्वजनिक पटल पर रखे, जिससे जनता को मालूम पड़े कि किसने कितना पैसा दिया। यह स्कीम मोदी सरकार ‘मनी बिल’ के तौर पर लाई थी, ताकि राज्यसभा में इस पर चर्चा न हो, यह सीधा पारित हो जाए। हमें डर है कि कहीं फिर से कोई अध्यादेश जारी न हो जाए और मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बच जाए।”
– एजेंसी