पेट में गैस बनने की समस्या और शरीर में भारीपन का लक्षण, कुछ लोगों को हर दिन या हर दूसरे तीसरे दिन परेशान करता है. अगर आपके साथ भी ऐसा है तो इससे परेशान होने या इसे अनदेखा करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि दोनों ही स्थितियों में ये आपकी दिक्कत बढ़ा सकता है. परेशान होने या तनाव लेने से हॉर्मोनल दिक्कत बढ़ सकती है और अनदेखा करने से बीमारी पैर पसार सकती है.
अक्सर पेट में गैस होना
बॉडी में हेवीनेस होना
अपच की समस्या होना
रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना
काम में मन ना लगना
फोकस ना कर पाना
जिन लोगों में भी इस तरह की समस्या होती है, उन्हें अपनी बॉडी में डेली न्यूट्रिशनल वैल्यू को पूरा करने के लिए सप्लिमेंट्स की भी जरूरत पड़ती है. क्योंकि अच्छी डायट लेने के बाद भी आमतौर पर इन्हें उस खाने का पूरा पोषण नहीं मिल पाता है. ये सभी समस्याएं आंतों की खराब सेहत के कारण हो सकती हैं.
यदि आपको ऊपर बताए गए सभी लक्षण अपने अंदर नजर आ रहे हैं तो एक खास बात पर और गौर करें कि क्या इन सभी समस्याओं के साथ आपकी स्किन पर रैशेज, एग्जिमा या दूसरी कोई एलर्जी या समस्या हो रही है…अगर हां तो ये कंफर्मेंशन सिंबल है कि आपको आंतों को हेल्दी करने के लिए तुरंत काम करना होगा.
जिन लोगों को स्किन संबंधी समस्या नहीं है या है भी तो उन्हें जोड़ों में दर्द या फिर जोड़ों में खिंचाव और तनाव भी महसूस हो सकता है. इनमें से ज्यादातर लक्षणों पर आपका उत्तर अगर हां में है तो अनदेखा ना करें. क्योंकि इस स्थिति में आंतें भोजन को ठीक से पचा पाने और सोखने में मदद नहीं कर पाती हैं, जिससे अपच संबंधी दूसरी दिक्कतें भी बढ़ने लगती हैं.
ऊपर बताई गई सभी समस्याएं आंत से संबंधित जिस बीमारी के कारण नजर आती हैं, इसे लिइकी गट कहा जाता है. इस समस्या में आंतें खाने को पचाने के लिए और इसके रस को सोखने के लिए होल्ड नहीं कर पाती हैं.
इससे शरीर में सूजन की समस्या बढ़ जाती है और गट फ्लोरा यानी गट हेल्थ में बदलाव होने लगता है. गट्स में बदलाव होने के बाद पाचन संबंधी समस्याएं और अधिक बढ़ जाती हैं. क्योंकि गट्स उन हेल्दी बैक्टीरिया का हिस्सा हैं, जो खाए हुए भोजन के पाचन में अहम रोल निभाते हैं.
आंतों को हेल्दी रखने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि आप प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स फूड्स का सेवन करें. प्रोबायोटिक्स यानी वो फूड्स जिन्हें फर्मेंटेशन के बाद तैयार किया जाता है. जैसे, दही, कांजी, फर्मेंटेड आंवला, सिरका (विनेगर) से बने फूड्स इत्यादि. इन फूड्स में लिविंग माइक्रोऑर्गेनिज़म होते हैं.
प्रीबायोटिक्स यानी ऐसे फूड्स जिनमें ऐसे न्यूट्रिऐंट्स होते हैं, जिनका सेवन माइक्रोऑर्गेनिज़म करते हैं. जैसे, ओट्स, कच्ची सब्जियां, ताजे फल. जैसे, सेब, आड़ू, नाशपाती, चीकू और साबुत अनाज और स्प्राउट्स.
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