राजनीतिक दलों को धन देने के लिए शुरू की गई चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को सुनवाई प्रारंभ हुई।
सरकार ने यह योजना दो जनवरी 2018 को अधिसूचित की थी। इस योजना को राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता लाने की कोशिशों के हिस्से के रूप में पार्टियों के लिए नकद चंदे के एक विकल्प के रूप में लाया गया है।
इस योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत का कोई भी नागरिक या भारत में स्थापित संस्था खरीद सकती है। कोई व्यक्ति, अकेले या अन्य लोगों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और एनजीओ ‘असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की याचिकाएं शामिल हैं।
एडीआर की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पीठ से कहा कि यह एक ऐसा मामला है जो ‘हमारे लोकतंत्र की जड़’ तक जाता है।
सुनवाई से पहले, अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने न्यायालय में दाखिल की गई एक दलील में कहा है कि राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड योजना के तहत मिलने वाले चंदे के स्रोत के बारे में नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत सूचना पाने का अधिकार नहीं है।
वेंकटरमणी ने राजनीतिक वित्त पोषण के लिए चुनावी बॉन्ड योजना से राजनीतिक दलों को ‘क्लीन मनी’ मिलने का उल्लेख करते हुए यह कहा।
– एजेंसी