अब्बू (सुबह के वक्त चाय पीते हुए): बड़े भाई ये पति और चायपत्ती में क्या फर्क है?
रानू (बेहद मरे हुए अंदाज में, गरम चाय को फूंकते हुए): चायपत्ती जो होती है एक बार में उबाल कर उसका सारा रंग उड़ जाता है। जबकि पति का रंग पत्नी के तानों और पिटाई से जीवन भर उडता रहता है।😜😂😂😂😛🤣
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रानू (अपने पेट पर हाथ फेरते हुए): मोटे आदमी के सामने एक समोसा। ये तो वही बात हो गई “हाथी के मुंह में खीरा” !
अब्बू : गोलू भाई, हाथी के मुंह में खीरा नहीं। कहावत तो दूसरी है — ऊंट के मुंह में जीरा।
रानू (थोड़ा गुस्से में): अबे घोंचू, कहावत दूसरी हो या तीसरी, बात तो एक ही है। पेट तो खाली ही रहा।😜😂😂😂😛🤣
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रानू : अब्बू भइया रात मुझे बहुत प्यारा सपना आया। मैं बादशाह अकबर के दरबार में तानसेन बना, हाथ में वीणा लेकर, ऊँचे सुर में राग मल्हार गा रहा हूँ।
अब्बू : ओहो तो वो आप थे बड़े भइया। मैं तमाम रात सोचता रहा। शायद कालू कुम्हार के गधे का हाज़मा बिगड़ गया है। इसलिए बेचारा पूरी रात दर्द से कराहा रहा है।😜😂😂😂😛🤣
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अब्बू : ये सुबह-सुबह मुंह लटकाए क्यों बैठे हो गोलू भाई?
रानू (उदास स्वर में): यार अब्बू बताऊँ? जबसे देसी घी पचास रूपये सस्ता हो गया। मुझे तो घाटा हो गया।
अब्बू (हैरानी से): वह कैसे?
रानू (रोते स्वर में): पहले देसी घी न खाकर पूरे साढ़े चार सौ रूपये बचते थे। अब सिर्फ चार सौ रूपये ही बचेंगे।😜😂😂😂😛🤣