युवाओं के ज्यादातर पसंदीदा जंक फूड मैदे से ही बने होते हैं. मैदे को लेकर अक्सर यह कहा जाता है कि ये आंतों में फंस जाता है या इसको पचाने के लिए शरीर को अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता है. मैदे के नुकसानों को जानने के बावजूद लोग इससे बनी चीज़ों का सेवन करना पसंद करते हैं.
मैदा गेहूं के आटे का एक अत्यधिक संसाधित (प्रोसेस्ड) रूप है, जिसमें से चोकर और रोगाणु को हटा दिया जाता है. हालांकि इस प्रक्रिया के दौरान ऐसे कई पोषक तत्व और फाइबर भी इससे बाहर निकल जाते हैं, जो आटे में पाए जाते हैं. यही वजह है कि मैदे के सेवन को स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं समझा जाता है. मैदे को नियमित रूप से खाने से मोटापा और वजन बढ़ सकता है. टाइप 2 डायबिटीज़, दिल की बीमारी, कब्ज, सूजन और गैस जैसी पाचन से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
मैदे को आंत के स्वास्थ्य के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि फाइबर की कमी की वजह से ये आपके डाइजेशन सिस्टम के रास्ते से चिपक सकता है और डाइजेशन से जुड़ी परेशानियां पैदा कर सकता है.
न्यूट्रिशनिस्ट भुवन रस्तोगी ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में बताया है कि “मैदा आसानी से डाइजेस्ट नहीं होता है” ये एक मिथ है. रस्तोगी कहती हैं कि सच्चाई यह है कि मैदा काफी तेजी से डाइजेस्ट होता है, जिसकी वजह से ब्लड शुगर लेवल तेजी से बढ़ोतरी होती है.
भारत में हमेशा से यह धारणा रही है कि मैदा पेट या आंत में जाकर जमा हो जाता है और आसानी से डाइजेस्ट नहीं होता है. न्यूट्रिशनिस्ट का कहना है कि मैदा पचाने में काफी आसान होता है. क्योंकि ये चीनी की तरह जल्दी-जल्दी पचता है. यही वजह है कि ये सेहत के लिए नुकसानदायक है. उन्होंने कहा कि हाई फाइबर वाले फूड आइटम्स धीरे-धीरे डाइजेस्ट होते हैं, इसलिए कोई भी साबुत अनाज (जैसे-आटा) मैदे के मुकाबले धीरे-धीरे पचता है.
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