तमिलनाडु में किये गए एक अध्ययन के अनुसार लोगों के सहयोग से स्थानीय स्तर पर उपायों को बढ़ावा देकर सर्पदंश के मामलों को घटाया जा सकता है और कई व्यक्तियों की जान बचाई जा सकती है।
यह अध्ययन, तमिलनाडु के ग्रामीण कृषक समुदायों के 535 लोगों पर किया गया। इसके तहत उनसे यह पूछा गया कि वे सर्पदंश रोधी क्या उपाय करेंगे तथा अपनी सुरक्षा के लिए और अधिक प्रयास करने की उनकी राह में क्या बाधक है।
अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि तमिलनाडु में भारत की आबादी का केवल पांच प्रतिशत हिस्सा निवास करता है लेकिन देश में सर्पदंश से होने वाली मौतों में करीब 20 प्रतिशत इस राज्य में होती है।
अध्ययन के नतीजे कंजरवेशन साइंस एंड प्रैक्टिस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि ज्यादातर लोग (69 प्रतिशत) सर्पदंश को रोकने के उपाय करते हैं।
सर्पदंश को रोकने के उपाय करने वाले लोगों में आधे से अधिक (59 प्रतिशत) साक्ष्य समर्थित उपाय करते हैं और सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करते हैं।
अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि इन उपायों में घरों और आसपास के स्थान को साफ-सुथरा रखना और रात में टॉर्च का इसतेमाल करना शामिल है। अध्ययन दल में मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट के विशेषज्ञ भी शामिल हैं।
अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि हालांकि 41 प्रतिशत लोग पूरी तरह से या आंशिक रूप से उन उपायों पर निर्भर करते हैं जिन्हें शोध या आधिकारिक परामर्श द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है जैसे कि प्रतिरोधक के रूप में नमक, लहसुन, हल्दी आदि का छिड़काव करना।
ब्रिटेन के एक्सटर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई के तहत अध्ययन का नेतृत्व करने वाले हैरिसन कार्टर ने कहा, ”असल में इस महत्वपूर्ण चीज का पता लगाना है जो एक खास स्थान में कारगर हो और लोगों को उसका उपयोग व्यवाहरिक लगे तथा वे आसानी से कर सकें।”
अब ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययनरत कार्टर ने कहा, ”उदाहरण के तौर पर, तमिलनाडु में कुछ किसानों को पूर्व में सुरक्षा के लिए घुटने तक के जूते दिये गए, लेकिन ज्यादातर लोग धान के खेतों में काम करते हैं जहां ये जूते तुरंत कीचड़ में फंस जाते हैं। लेकिन इसकी अनदेखी कर दी गई कि लोगों से बातचीत करना और उनसे उनकी जरूरत के बारे में पूछने की जरूरत है।”
अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि अपने समुदायों का विश्वास रखने वाले स्थानीय साझेदारों के साथ कम कर वास्तविक बदलाव लाने के लिए आसान उपायों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि विश्वभर में हर साल करीब 1.4 लाख लोगों की सर्पदंश से मौत हो जाती है और अन्य चार लाख लोग स्थायी रूप से अशक्तत हो जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सर्पदंश को एक ‘अनदेखी की गई उष्णकटिबंधीय रोग’ की श्रेणी में अब रखा है और यह सर्पदंश से होने वाली मौतों एवं अशक्तता को 2030 तक आधा करने के प्रति प्रतिबद्ध है।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, तमिलनाडु में ऐसे चार जहरीले सांपों की अधिक संख्या है जो मानव को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। इनमें कोबरा, रसेल वाइपर, सॉ-स्केल्ड वाइपर, सामान्य करैत शामिल हैं।
– एजेंसी