बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने 2016 में महाराष्ट्र के बुलढाणा में खाद्य सुरक्षा अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा जारी उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें टाटा केमिकल्स लिमिटेड और अन्य कंपनियों पर ‘‘घटिया आयोडीन युक्त नमक बनाने व बिक्री करने’’ के लिए जुर्माना लगाया गया था।
न्यायमूर्ति अनिल एल. पानसरे ने अपने आदेश में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को भविष्य में ऐसे मामलों में प्रक्रियात्मक अनुपालन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उचित सलाह या परिपत्र जारी करने का भी निर्देश दिया।
टाटा केमिकल्स लिमिटेड व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य से जुड़े मामले में खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 की धारा 71(6) के तहत 13 अक्टूबर, 2016 के आदेश के खिलाफ अपील की गई थी। अपील टाटा केमिकल्स लिमिटेड और अन्य ने की थी।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में मामले में कई गंभीर विसंगतियों और प्रक्रियात्मक खामियों को रेखांकित किया। पाया गया कि खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट जिसमें उत्पाद को गलत ब्रांड बताया गया, उसका अपीलकर्ताओं ने विरोध किया। इसके बाद मामले को आगे के विश्लेषण के लिए रेफरल फूड लेबोरेटरी (आरएफएल) को भेजा गया।
आदेश में कहा गया है कि आरएफएल की रिपोर्ट यह निष्कर्ष निकाला गया कि उत्पाद घटिया है लेकिन प्रारंभिक रिपोर्ट से इसके लिए पर्याप्त तर्क या औचित्य प्रदान नहीं किए गए। पारदर्शिता की इस कमी से आरएफएल के निष्कर्षों की वैधता और प्रक्रिया की समग्र अखंडता पर सवाल उठते हैं।
न्यायमूर्ति पानसरे ने आदेश में कहा, ‘‘ आरएफएल ने स्पष्ट रूप से 2011 के नियमों में निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं किया। इस तरह रिपोर्ट में अनिवार्य प्रावधानों का अनुपालन नहीं हुआ। ऐसी रिपोर्ट के आधार पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता। न्यायनिर्णय अधिकारी और प्राधिकरण ने भी अस्थिर निष्कर्ष दिया है।’’
इन आलोचनात्मक टिप्पणियों के साथ उच्च न्यायालय ने पिछले आदेशों को रद्द कर दिया और सभी अपीलकर्ताओं को दोषमुक्त करार दिया। इसके अलावा उसने एफएसएसएआई को भविष्य में ऐसे मामलों में प्रक्रियात्मक अनुपालन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उचित सलाह या परिपत्र जारी करने का निर्देश दिया।
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