बॉबी देओल की “आश्रम” ने खोली बाबाओं की पोल, राजनीति और अपराध का गढ़

प्रकाश झा निर्देशित और बॉबी देओल अभिनीत चर्चित वेब सीरीज “आश्रम” ने अपना समापन कर लिया, लेकिन इसके साथ ही यह कई बहसों को जन्म दे गई। MX प्लेयर पर स्ट्रीम हुई इस सीरीज ने धर्म की आड़ में चलने वाले उन आश्रमों की असलियत उजागर की, जो राजनीति, काले धन और अपराध के अड्डे बन चुके हैं।

डायरेक्टर और राइटर की टीम ने शुरुआत से ही दर्शकों को किसी भ्रम में नहीं रखा। इसका नाम ही रखा गया— “एक बदनाम आश्रम”, जिससे साफ था कि यह कहानी ऐसे ढोंगी बाबाओं की पोल खोलेगी, जिनके कारनामे देशभर में सुर्खियां बन चुके हैं।

बाबा की दुनिया: भक्ति के नाम पर भय और अपराध
इस वेब सीरीज की कहानी एक ऐसे आश्रम की है, जहां भक्तों की अटूट आस्था है, लेकिन पर्दे के पीछे एक खौफनाक खेल चलता है। बाबा निराला (बॉबी देओल) अपने भक्तों का शुद्धिकरण करने का ढोंग करता है, लेकिन खुद अनगिनत अपराधों में लिप्त रहता है।

पहले यह आश्रम मनसुख बाबा के नियंत्रण में था, जो इसे राजनीति और अपराध से दूर रखते थे। लेकिन जैसे ही मोंटी (बॉबी देओल) उर्फ बाबा निराला और उसका साथी भोपा स्वामी (चंदन रॉय सान्याल) यहां काबिज होते हैं, तो यह भक्ति स्थल अपराध का गढ़ बन जाता है।

धर्म की आड़ में सत्ता का खेल
“आश्रम” ना सिर्फ बाबाओं की काली सच्चाई को उजागर करता है, बल्कि धर्म और राजनीति के गठजोड़ को भी दिखाता है। बाबा निराला सिर्फ एक धार्मिक गुरु नहीं, बल्कि राजनीति में भी दखल रखता है।

वह चुनावों को प्रभावित करता है, सरकारें बनवाता और गिरवाता है, नेताओं को अपने इशारों पर नचाता है। आश्रम के गुंडे पुलिस से ज्यादा ताकतवर होते हैं। एक सीन में बाबा का प्राइवेट गार्ड असली पुलिस वाले को डांटता है—
“जहां बाबा की सेना होती है, वहां पुलिस की जरूरत नहीं होती!”

यौन शोषण और “जपनाम” का खेल
बाबा निराला का सबसे बड़ा हथियार है— “जपनाम”। यह सिर्फ एक प्रणाम का शब्द नहीं, बल्कि एक सम्मोहन मंत्र है, जो भक्तों को पूरी तरह से मानसिक गुलाम बना देता है।

आश्रम में बाबा महिलाओं का यौन शोषण करता है। पम्मी पहलवान (अदिति पोहानकर) इस जाल में फंस जाती है, लेकिन जब उसे सच्चाई समझ में आती है, तब वह बागी बन जाती है।

क्या “आश्रम” की कहानी सच के करीब है?
“आश्रम” देखने के बाद लोगों के मन में यह सवाल उठता है— क्या सच में देश में ऐसे बाबाओं के आश्रम होते हैं?

इसका जवाब बहुत हद तक “हां” है। पिछले कुछ सालों में राम रहीम, आसाराम बापू और कई अन्य ढोंगी बाबाओं के घिनौने अपराधों का पर्दाफाश हुआ है। उनके आश्रमों से बलात्कार, हत्या और भ्रष्टाचार की कहानियां सामने आई हैं।

इस वजह से प्रकाश झा और उनकी टीम पर कानूनी नोटिस भी भेजे गए लेकिन उन्होंने साफ कहा—
“हम सच दिखाकर रहेंगे!”

“आश्रम” का क्लाइमैक्स: जब पम्मी ने बगावत की!
“आश्रम” के तीसरे सीजन के दूसरे पार्ट में कहानी अपने चरम पर पहुंचती है। बागी पम्मी पहलवान जेल में है, लेकिन उसके अंदर बाबा से बदला लेने की आग धधक रही है।

उसकी मां की मौत हो जाती है, प्रेमी की हत्या कर दी जाती है और आश्रम की काली दुनिया धीरे-धीरे उजागर होने लगती है। यह दिखाता है कि हर पाप का घड़ा एक दिन फूटता ही है।

“आश्रम” की लोकप्रियता और विजुअल प्लेजर
इतनी सच्चाई उजागर होने के बावजूद “आश्रम” वेब सीरीज को लोगों ने खूब पसंद किया। इसकी रहस्यमयी दुनिया, भव्य सेट, दमदार डायलॉग्स और रोमांचक कहानी ने दर्शकों को बांधे रखा।

कोविड लॉकडाउन के दौरान यह सीरीज मनोरंजन का बड़ा जरिया बनी और भक्तों के अंधविश्वास पर एक तीखा प्रहार किया।

क्या “आश्रम” का सफर यहीं खत्म हुआ?
“आश्रम” ने दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या सच में धर्म के नाम पर इतनी धांधली हो रही है? और क्या ऐसे ढोंगी बाबाओं की सत्ता को खत्म किया जा सकता है?

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