डीआरडीओ ने प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीडीएफ) योजना के तहत ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम विकसित करके अंतरिक्ष रक्षा प्रौद्योगिकी में बड़ी छलांग लगाई है। इस सिस्टम ने पीएसएलवी सी-58 मिशन में लॉन्च किए गए पेलोड पर अंतरिक्ष कक्षा में अपनी कार्यक्षमता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है। ऊंचाई पर नियंत्रण और सूक्ष्म उपग्रह की कक्षा में रखने के लिए 1 एन क्लास ग्रीन मोनोप्रोपेलेंट थ्रस्टर परियोजना को मंजूरी दी गई थी।
बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (विकास एजेंसी) ने इसे निर्मित किया है। बेंगलुरु के ही इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) ने पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल (पीओईएम) से टेलीमेट्री डेटा को जमीनी स्तर के समाधान के साथ मान्य किया है। यह सभी प्रदर्शन मापदंडों में अपेक्षा से अधिक उचित पाया गया है। इस नई तकनीक से कम कक्षा वाले स्थान के लिए गैर-विषाक्त और पर्यावरण-अनुकूल प्रणोदन प्रणाली तैयार हुई है। इस प्रणाली में स्वदेशी रूप से विकसित प्रोपेलेंट, फिल और ड्रेन वाल्व, लैच वाल्व, सोलेनॉइड वाल्व, कैटलिस्ट बेड, ड्राइव इलेक्ट्रॉनिक्स आदि शामिल हैं। यह सिस्टम उच्च थ्रस्ट आवश्यकताओं वाले अंतरिक्ष मिशन के लिए आदर्श पाया गया है।
डीआरडीओ के प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग एंड मेंटरिंग ग्रुप के मार्गदर्शन में विकास एजेंसी ने इसे विकसित किया है। इसने स्थिर अवस्था में फायरिंग, बाह्य अंतरिक्ष में अवशिष्ट प्रणोदक का निष्क्रियकरण, टीडीएफ के तहत प्रणोदक प्राप्ति और भरने की प्रक्रिया की स्थापना का प्रदर्शन किया है। टीडीएफ रक्षा मंत्रालय का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसे रक्षा और एयरोस्पेस, विशेषकर स्टार्ट-अप और एमएसएमई में नवाचार के वित्तपोषण के लिए ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत डीआरडीओ क्रियान्वित करता है।
डीआरडीओ के मुताबिक रक्षा में आत्मनिर्भर पहल को बढ़ावा देने के लिए भारत प्रौद्योगिकी विकास निधि योजना अंतरिक्ष क्षेत्र में डीप टेक नवाचारों का समर्थन कर रहा है। विकसित तकनीक पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित है, जिससे उपग्रह की लागत कम हो जाएगी और यह भारतीय अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने वाली प्रमुख तकनीक होगी। तकनीकी रूप से प्रशिक्षित बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस ने छोटे उपग्रहों के लिए भारत की पहली उच्च प्रदर्शन वाली हरित प्रणोदन प्रणाली विकसित की है, जिसका पीएसएलवी सी-58 मिशन के पीओईएम मॉड्यूल पर कक्षा में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है। इस तकनीक को डीआरडीओ टीडीएफ के समर्थन से विकसित किया गया है।
– एजेंसी