असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का उग्र हिंदुत्व का एजेंडा लगातार सुर्खियों में है. हिमंत बिस्वा सरमा लगातार ऐसे फैसले ले रहे हैं, जो मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं और उनको लेकर पूरे देश में चर्चा हो रही है. शुक्रवार को हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार ने असम विधानसभा में जुमे की नमाज के लिए मिलने वाले ब्रेक को खत्म कर दिया है. शुक्रवार को नमाज अदा करने के लिए दो घंटे का जुमा ब्रेक दिया जाता था, लेकिन हिमंत बिस्वा सरमा ने यह कहते हुए इसे बंद कर दिया कि असम विधानसभा की उत्पादकता उनकी प्राथमिकता है और यह औपनिवेशिक बोझ का प्रतीक था.
जुम्मे की नमाज के लिए मिलने वाले ब्रेक की प्रथा साल 1937 से असम में चली आ रही थी. मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला की ओर से नौ दशक पहले शुरू की गई परंपरा को हिमंत बिस्वा सरमा ने ब्रेक लगा दिया है. हिमंत बिस्वा सरमा ने इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है. यह फैसला ठीक एक दिन पहले लिए गए उस फैसले के बाद आया है, जिसमें विधानसभा में मुस्लिम विवाह और तलाक को लेकर एक विधेयक पारित किया गया था. इस विधेयक के अनुसार मुस्लिम शादियों और तलाक का सरकारी पंजीकरण अनिर्वाय कर दिया गया है.
हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने मुस्लिम शादियों और तलाक के पंजीकरण के लिए 1935 के अधिनियम को खत्म कर दिया. विधानसभा में पारित विधेयक के अनुसार अबसे मुस्लिमों की शादी के लिए सरकारी पंजीकरण जरूरी है. उन्होंने बहुविवाह समाप्त करने और बाल विवाह समाप्त करने की बात कही है. उनका यह फैसला मुस्लिम शादियों को लेकर बड़ा माना जा रहा है. फिलहाल मुस्लिमों की शादियां काजी द्वारा ही कराई जाती है और उसे ही मान्यता दी जाती रही है. हिमंत बिस्वा सरमा ने यह कदम अपने उस बयान के बाद उठाया है, जिसमें उन्होंने कहा कि असम में मिया मुसलमानों को काबिज होने नहीं देंगे. नागांव जिले के धींग इलाके में हुई 14 वर्षीय लड़की के साथ क्रूर बलात्कार की घटना के बाद असम के मिया मुसलमानों को लेकर असम के सीएम के बयान की विपक्षी पार्टियों ने आलोचना की और विपक्षी पार्टियों ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की पत्र लिखकर इसकी शिकायत की थी और बंगाली मुसलमानों के खिलाफ घृणास्पद भाषणों के लिए असम में सरमा सरकार को बर्खास्त करने की भी मांग की थी.
इसके पहले हिमंत बिस्वा सरमा लगातार असम में मुस्लिम आबादी को लेकर बयान देते रहे हैं. उन्होंने असम में जनसांख्यिकी में बदलाव को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि असम में मुस्लिम आबादी अबबढ़कर 40 प्रतिशत तक हो गयी है. साल 1951 में असम में मुस्लिम आबादी 12 फीसदी थी. कई ऐसे जिले हैं, जो मुस्लिम बहुल हो गये हैं. उन्होंने इसे जीवन और मृत्यु का विषय करार दिया था. साल2011 कीजनगणनाकेअनुसारअसम में हिंदू की आबादी 61.5फीसदी थी, जबकि मुस्लिम की आबादी34.22फीसदी थी. 3.7फीसदी वहींईसाई, अनुसूचितजातिऔरजनजातिकीआबादी है.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार असम के 32 जिलों में से 11 मुस्लिम बहुल जिले हैं. ये जिले धुबरी, गोलपारा, बारपेटा, मोरीगांव, नागांव, होजई, करीमगंज, दक्षिण सलमारा-मनकाचर, हैलाकांडी, दारंग और बोंगाईगांव हैं. 2001 की जनगणना में असम में असमिया समुदाय लगभग 47 फीसदी था, जो साल 2016 में घटकर लगभग 40-45 फीसदी रह गया है. स्वदेशी असमिया मुसलमानों, जिन्हें खिलोंजिया मुसलमानों के रूप में भी जाना जाता है, में गोरिया और मोरिया जैसे जातीय समूह शामिल हैं. असम में कुल 1 करोड़ में मुसलमानों में से उनकी आबादी लगभग 40 लाख होने का अनुमान है.
ऐसे में असम में मुस्लिमों की लगातार बढ़ती संख्या को लेकर हिमंता बिस्वा सरमा लगातार अटैक कर रहे हैं और मूल असमिया आबादी को लुभाने की कोशिश करर हे हैं. इससे पहले 1 जुलाई को सीएम हिमंत बिस्वा ने विशेष धर्म के लोगों के एक वर्ग पर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने पर चिंता जताई थी. इसके पहले 23 जून को हिमंत बिस्वा सरकार ने किया था कि बांग्लादेशी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने राज्य और केंद्र सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों पर विचार किए बिना लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को वोट दिया.उन्होंने साफ कहा कि बांग्लादेशी मूल के अल्पसंख्यक समुदाय राज्य में सांप्रदायिकता में लिप्त है.
बता दें कि लोकसभा चुनावों में, भाजपा-एजीपी-यूपीपीएल गठबंधन ने असम में 14 लोकसभा सीटों में से 11 पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने शेष तीन सीटें जीतीं, हालांकि ऊपरी असम के जोरहाट की सीट भाजपा पूरी ताकत लगाने के बात भी नहीं जीत पाई. जोरहाट सीट पर तरुण गोगोई के बेटे कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने जीत हासिल की. असम के पत्रकार गुलाम चिश्ती कहते हैं कि जोरहाट ऊपरी असम का इलाका है और राज्य की 126 सीटों में से 40 सीटें ऊपरी असम की है और बीजेपी ने साल 2021 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन अब जिस तरह से गौरव गोगोई अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं. वह बीजेपी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. इस कारण असम के सीएम लगातार वोटों के ध्रुवीकरण करने में जुटे हुए हैं. झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं और हिमंत विस्बा सरमा वहां भाजपा के केंद्रीय सह प्रभारी है. झारखंड विधा