जय संतोषी मां की 50वीं वर्षगांठ: एक फिल्म जो बनी थी विश्वास का प्रतीक

आज से ठीक 50 साल पहले एक ऐसी फिल्म आई थी, जिसकी रिलीज़ पर न कोई चर्चा थी, न प्रचार और न ही किसी को इसकी उम्मीद थी कि यह फिल्म इतिहास रच देगी। हम बात कर रहे हैं ‘जय संतोषी मां’ की—एक ऐसी धार्मिक फिल्म जिसने आस्था, सिनेमा और जनमानस के मेल से एक अद्भुत चमत्कार रचा।

‘शोले’ की गूंज में गुम थी ‘जय संतोषी मां’
जब जय संतोषी मां बन रही थी, उसी समय शोले जैसी मल्टीस्टारर फिल्म भी निर्माणाधीन थी। शोले के सेट्स, कलाकारों और शूटिंग से जुड़ी खबरें अख़बारों और पत्रिकाओं में छाई रहती थीं। लोग उसके लोकेशन्स देखने पहुंचते थे। लेकिन जय संतोषी मां की शूटिंग चुपचाप मुंबई के बसंत स्टूडियो में हो रही थी, जिसकी चर्चा तक नहीं थी।

पहले हफ्ते रहा सन्नाटा, फिर चल पड़ा आस्था का रेला
30 मई को रिलीज़ हुई जय संतोषी मां के पहले हफ्ते थिएटर खाली रहे। लेकिन जो भी इसे देखने गया, उसने अपने जानने वालों को इसकी महिमा बताई। इस ‘माउथ पब्लिसिटी’ ने फिल्म की किस्मत बदल दी। यह बताया गया कि फिल्म में एक ऐसी देवी हैं, जिनकी महिमा से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तक कांप उठते हैं। देखते ही देखते यह फिल्म ग्रामीण भारत की श्रद्धा का प्रतीक बन गई।

सितारों की नहीं, चमत्कार की खोज में थे दर्शक
जहां शोले में लोग धर्मेंद्र, अमिताभ, हेमा मालिनी और गब्बर सिंह को देखने जाते थे, वहीं जय संतोषी मां में दर्शकों को सितारों से मतलब नहीं था। वे देवी को देखने जाते थे। अनिता गुहा द्वारा निभाई गई संतोषी मां की भूमिका ने उन्हें श्रद्धा का पात्र बना दिया। थिएटरों में लोग चप्पलें बाहर उतारकर प्रवेश करते, स्क्रीन पर पैसे चढ़ाते और घर जाकर सोलह शुक्रवार का व्रत रखने का प्रण लेते।

लागत 30 लाख, मुनाफा हजार गुना!
जय संतोषी मां महज 30 लाख की लागत में बनी थी, लेकिन इसने अपनी लागत से हज़ार गुना ज्यादा कमाई की। वहीं, शोले ने चार सौ गुना का मुनाफा कमाया। आंकड़ों के लिहाज से जय संतोषी मां आज भी सबसे ज्यादा लाभ देने वाली भारतीय फिल्म मानी जाती है। हाल के वर्षों में द कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी जैसी फिल्में इसी मॉडल पर चर्चा में आईं।

चमत्कार का सिनेमा और नया सहारा
फिल्म की कहानी में कई धार्मिक प्रसंगों को जोड़कर देवी की महिमा रची गई। लोगों को लगा कि उनके जीवन में जो भी अच्छा हो रहा है, वो संतोषी मां की कृपा से हो रहा है। यह एक मनोवैज्ञानिक संबल बन गया। बिल्कुल उसी तरह जैसे आज लोग चमत्कार दिखाने वाले बाबाओं की शरण में जाते हैं, उस दौर में लोग संतोषी मां को जीवन की नई उम्मीद के रूप में देखने लगे।

देवी कहां से आईं?
पूर्व संपादक विनोद तिवारी बताते हैं कि फिल्मकारों ने इसकी शुरुआत में ही यह स्पष्ट कर दिया था कि यह कथा लोक मान्यताओं पर आधारित है। किसी भी प्राचीन ग्रंथ में संतोषी मां का उल्लेख नहीं मिलता। बल्कि इस फिल्म के हिट होने से पहले लोक कथाओं में भी संतोषी मां का कोई उल्लेख नहीं था। यानी देवी को सिनेमा ने जन्म दिया, और जनमानस ने उन्हें पूजनीय बना दिया।

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